बदसूरत ऊँट
एक ऊँट था। दूसरों की निंदा करने की उसकी बुरी आदत थी। वह हमेशा दूसरे जानवरों व चिडि़यों की शक्ल-सूरत की खिल्ली उड़ाता रहता था। उसके मुँह से कभी किसी जानवर की तारीफ नही निकलती थी।
गाय से वह कहता, “जरा अपनी शक्ल तो देखो! कितनी बदसूरत हो तुम! हड्डियो का ढ़ाँचा मात्र है तुम्हारा शरीर। लगता है तुम्हारी हड्डियाँ खाल फाड़कर किसी भी क्षण बाहर निकल आएँगी।”
भैंस से वह कहता, “तुमनें तो विधाता के साथ जरुर कोई शैतानी की होगी! तभी तो उसने तुझे काली-कलूटी बनाया है। तुम्हारे टेढ़े-मेढ़े सींग तुम्हें और भी बद्सूरत बना देते है।”
हाथी को चिढ़ाता हुआ वह कहता, “तुम तो सभी जानवरों में कार्टून जैसे दिखते हो। विधाता ने मजाक के क्षणो में तुम्हे बनाया होगा। तुम्हारे शरीर के अंगों में किसी प्रकार का संतुलन नहीं है। तुम्हारा शरीर कितना विशाल है और पूँछ कितनी छोटी! तुम्हारी आँखें कितनी छोटी हैं और कान इतने बड़े सूप जैसे। तुम्हारी सूँड़, पैर और शरीर के अन्य अंगों के बारे में तो मैं बस चुप रहूँ, यही ठीक रहेगा।”
तोते से वह कहता, “तुम्हारी टेढ़ी और लाल रंग की चोंच बनाकर विधाता ने वाकई तुम्हारे साथ मजाक किया है।”
इस तरह ऊँट हमेशा हर जानवर की खिल्ली उडा़ता रहता था।
एक बार ऊँट की मुलाकात एक लोमड़ी से हो गई। वह बड़ी ही मुँहफट थी और किसी को भी खरी बात सुनानें से नही हिचकती थी। ऊँट उसके बारे में उल्टा-सीधा बोलना शुरु करे, इसके पहले ही लोमड़ी नें कहा, “अरे ऊँट, तू लोगों के बारे में उल्टी-सीधी बातें करने की अपनी गंदी आदत छोड़ दे। जरा अपनी शक्ल-सूरत तो देख। तुम्हारा लंबा चेहरा, पत्थर जैसी तुम्हारी आँखें, पीले-पीले गंदे दाँत, टेढ़े-मेढ़े भद्दे पैर और तुम्हारी पीठ पर यह भद्दा सा कूबड़। सभी जानवरों में सबसे बदसूरत तू ही है। दूसरे जानवरो में तो एक-दो खामियाँ है। पर तुम में तो बस खामियाँ ही खामियाँ हैं।”
लोमड़ी की खरी-खरी बात सुनकर ऊँट का सिर शर्म से झुक गया। वह चुपचाप वहाँ से खिसक गया।
शिक्षा -दूसरों की कमियाँ ढूँढ़ने के पहले अपनी कमियों पर नजर ड़ालिए।