सच्चा मित्र

सच्चा मित्र

एक दिन सुबह-सुबह दो मित्र समुद्र में नौका-विहार करने निकले। वे शांत समुद्र में नाव खेते और गपशप करते हुए जा रहे थे। देखते-ही-देखते वे किनारे से बहुत दूर गहरे समुद्र में जा पहुँचे।
तभी एकाएक आसमान में काले-काले बादल घिर आए। तूफानी हवाएँ चलने लगीं। समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं। उनकी नाव लहरों के साथ हिचकोले खाने लगी। अब मृत्यु उनकी आँखों के सामने नाचने लगी। इतने में सौभाग्य से उन्हें पास ही तैरता हुआ लकड़ी का एक पल्ला दिखाई पड़ा। डूबतों को जैसे तिनके का सहारा मिल गया। दोनों मित्रों ने झटपट नाव से छलाँग लगाई और तैरते-तैरते उस पल्ले को पकड़ लिया। पर पल्ला बहुत ही हल्का था। वह दोनों का भार वहन नहीं कर सकता था।

तब एक मित्र ने दूसरे मित्र से कहा,”देखो भाई, तुम शादीशुदा हो। तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं। उनके लिए तुम्हारा जिंदा रहना ज्यादा जरूरी है। मैं ठहरा अकेला। इसलिए मैं मर भी गया, तो कोई हर्ज नहीं!”
शादीशुदा मित्र ने जवाब दिया, “नही भाई, तुम्हारी माँ है, बहन है! अगर तुम मर गए, तो उनकी देखरेख कौन करेगा?”

“उनकी देखरेख का जिम्मा अब मैं तुम पर डालकर जा रहा हूँ।” कहते हुए पहले मित्र ने पल्ला छोड़ दिया। वह समुद्र में डूबकर मर गया।
शादीशुदा युवक पल्ले के सहारे तैरते-तैरते किसी तरह किनारे आ लगा। उसकी जान बच गई। वह सकुशल घर पहुँच गया। उसने अपने दिवंगत दोस्त की माँ और बहन की जिंदगी भर परवरिश की।

शिक्षा -सच्चे मित्र एक दूसरे के सुख दुख मे सहभागी होते है।