चलते रहने की ज़िद!
दृढ़ रहने पर प्रेरणादायक कहानी
अजय पिछले चार-पांच सालों से अपने शहर में होने वाली मैराथन में हिस्सा लेता था…लेकिन कभी भी उसने रेस पूरी नहीं की थी.
पर इस बार वह बहुत एक्साइटेड था. क्योंकि पिछले कई महीनों से वह रोज सुबह उठकर दौड़ने की प्रैक्टिस कर रहा था और उसे पूरा भरोसा था कि वह इस साल की मैराथन रेस ज़रूर पूरी कर लेगा.
देखते-देखते मैराथन का दिन भी आ गया और धायं की आवाज़ के साथ रेस शुरू हुई. बाकी धावकों की तरह अजय ने भी दौड़ना शुरू किया.
वह जोश से भरा हुआ था, और बड़े अच्छे ढंग से दौड़ रहा था. लेकिन आधी रेस पूरी करने के बाद अजय बिलकुल थक गया और उसके जी में आया कि बस अब वहीं बैठ जाए…
वह ऐसा सोच ही रहा था कि तभी उसने खुद को ललकारा…
रुको मत अजय! आगे बढ़ते रहो…अगर तुम दौड़ नहीं सकते, तो कम से कम जॉग करते हुए तो आगे बढ़ सकते हो…आगे बढ़ो…
और अजय पहले की अपेक्षा धीमी गति से आगे बढ़ने लगा.
कुछ किलो मीटर इसी तरह दौड़ने के बाद अजय को लगा कि उसके पैर अब और आगे नहीं बढ़ सकते…वह लड़खड़ाने लगा. अजय के अन्दर विचार आया….अब बस…और नहीं बढ़ सकता!
लेकिन एक बार फिर अजय ने खुद को समझाया…
रुको मत अजय …अगर तुम जॉग नहीं कर सकते तो क्या… कम से कम तुम चल तो सकते हो….चलते रहो.
अजय अब जॉग करने की बजाय धीरे-धीरे लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा.
बहुत से धावक अजय से आगे निकल चुके थे और जो पीछे थे वे भी अब आसानी से उसे पार कर रहे थे…अजय उन्हें आगे जाने देने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था. चलते-चलते अजय को फिनिशिंग पॉइंट दिखने लगा…लेकिन तभी वह अचानक से लड़खड़ा कर गिर पड़ा… उसके बाएँ पैर की नसें खिंच गयी थीं.
“अब कुछ भी हो जाए मैं आगे नहीं बढ़ सकता…”, जमीन पर पड़े-पड़े अजय के मन में ख़याल आया.
लेकिन अगले पल ही वो जोर से चीखा….
नहीं! आज चाहे जो हो जाए मैं ये रेस पूरी करके रहूँगा…ये मेरी ज़िद है…माना मैं चल नहीं सकता लेकिन लड़खड़ाते-लड़खड़ाते ही सही इस रेस को पूरा ज़रूर करूँगा….
अजय ने साहस दिखाया और एक बार फिर असहनीय पीड़ा सहते हुए आगे बढ़ने लगा….और इस बार वह तब तक बढ़ता रहा….तब तक बढ़ता रहा…जब तक उसने फिनिशिंग लाइन पार नहीं कर ली!
और लाइन पार करते ही वह जमीन पर लेट गया…उसके आँखों से आंसू बह रह थे.
अजय ने रेस पूरी कर ली थी…उसके चेहरे पर इतनी ख़ुशी और मन में इतनी संतुष्टि कभी नहीं आई थी…आज अजय ने अपने चलते रहने की ज़िदके कारण न सिर्फ एक रेस पूरी की थी बल्कि ज़िन्दगी की बाकी रेसों के लिए भी खुद को तैयार कर लिया था.
दोस्तों, चलते रहने की ज़िद हमें किसी भी मंजिल तक पहुंचा सकती है. बाधाओं के आने पर हार मत मानिए…
ना चाहते हुए भी कई बार conditions ऐसी हो जाती हैं कि आप बहुत कुछ नहीं कर सकते! पर ऐसी कंडीशन को “कुछ भी ना करने” का excuse मत बनाइए.
घर में मेहमान हैं आप 8 घंटे नहीं पढ़ सकते….कोई बात नहीं 2 घंटे तो पढ़िए…
बारिश हो रही है…आप 10 कस्टमर्स से नहीं मिल सकते…कम से कम 2-3 से तो मिलिए…
एकदम से रुकिए नहीं… थोड़ा-थोड़ा ही सही आगे तो बढ़िये.
और जब आप ऐसा करेंगे तो अजय की तरह आप भी अपने ज़िन्दगी की रेस ज़रूर पूरी कर पायेंगे और अपने अन्दर उस ख़ुशी उस संतुष्टि को महसूस कर पायेंगे जो सिर्फ चलते रहने की ज़िद से आती है!