धूर्त मेंढक, जैसी करनी वैसी भरनी
एक बार की बात है कि एक चूहे और मेंढक में गहरी दोस्ती थी| उन दोनों ने जीवन भर एक दूसरे से मित्रता निभाने का वादा किया लेकिन चूहा तो ज़मीन पर रहता था और मेंढक पानी में| उन्होनें एक दूसरे के साथ रहने की एक तरकीब निकाली| दोनों ने एक रस्सी से खुद को बाँध लिया ताकि हर जगह हम एक साथ जाएँगे और सारे सुख दुख एक साथ भोगेंगे|
जब तक दोनों ज़मीन पर रहे तब तक तो सब कुछ अच्छा चल रहा था अचानक मेंढक को एक शरारत सूझी और उसने पास के ही एक तालाब मे छलाँग लगा दी| बस फिर क्या था रस्सी से बँधे होने के कारण चूहा भी पानी में गिर गया| अब चूहा बहुत परेशान था वह डूब रहा था और बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था| लेकिन मेंढक धूर्त था उसने अपने मित्र चूहे को नज़रअंदाज़ करते हुए टरटरते हुए ज़ोर ज़ोर से तैरना शुरू कर दिया|
अब तो चूहे की जान ही निकल गयी वह बड़ी मुश्किल से मेंढक को तालाब के किनारे तक खींच कर लाया|
जैसे ही दोनों ने ज़मीन पर पैर रखा अचानक एक चील आई और चूहे को झपट कर उड़ने लगी अब रस्सी से बँधे होने के कारण मेढक भी पंजे में आ गया उसने छूटने का बहुत प्रयास किया लेकिन रस्सी को तोड़ ना सका और अंत में दोनों को चील ने खा लिया| अब तो चूहे के साथ मेंढक भी बेमौत मारा गया|
इसीलिए कहा जाता है की जो लोग दूसरों का बुरा करते हैं उसके साथ वह भी गड्ढे में गिरते हैं, तो जैसी करनी वैसी भरनी|