शेखचिल्ली की चल गई
शेखचिल्ली बाजार में यह कहता हुआ भागने लगा, चल गई, चल गई बात क्या थी?
एक दिन शेखचिल्ली बाजार में यह कहता हुआ भागने लगा, चल गई, चल गई उन दिनों शहर में शिया-सुन्नियों में तनाव था और झगड़े की आशंका थी।
उसे चल गई, चल गई चिल्लाते हुए भागते देखकर लोगों ने समझा कि लड़ाई हो गई है। लोग अपनी-अपनी दूकानें बंद कर भागने लगे। थोड़ी ही देर में बाजार बंद हो गया।
कुछ समझदार लोगों ने शेखचिल्ली के साथ भागते हुए पूछा, अरे यह तो बताओ, कहां पर चली है? कुछ जानें भी गई हैं क्या?
शेखचिल्ली थोड़ा ठहरा और हैरान होकर पूछा, क्या मतलब?
भाई, तुम्हीं सबसे पहले इस खबर को लेकर आए हो। यह बताओ लड़ाई किस मुहल्ले में चल रही है।
कैसी लड़ाई? शेखचिल्ली ने पूछा।
अरे तुम्हीं तो चिल्ला रहे थे कि चल गई चल गई।
हां-हां, शेखचिल्ली ने कहा वो तो मैं इसलिए चिल्ला रहा था कि बहुत समय से जेब में पड़ी एक खोटी दुअन्नी, आज एक लाला की दुकान पर चल गई है।
एक जगह कुछ लोग इकट्ठे बैठे थे। शेखचिल्ली भी वहीं बैठा था। कस्बे के कुछ समझदार लोग और हकीम जी दुर्घटनाओं से बचने के उपाय पर विचार-विमर्श कर रहे थे। किस दुर्घटना पर कौन-सी प्राथमिक चिकित्सा होनी चाहिए, इस पर भी विचार किया जा रहा था।
थोड़ी देर में हकीम जी ने वहां बैठे सभी लोगों से पूछा, किसी के डूब जाने पर पेट में पानी भर जाए और सांस रुक जाए तो तुम क्या करोगे? सब चुप थे।
हकीम जी के अन्य साथी बोले, तुम बोलो शेखचिल्ली, किसी के डूबने पर उसकी सांस रुक जाए तो सबसे पहले तुम क्या करोगे?
उसके लिए सबसे पहले कफन लाऊंगा। फिर कब्र खोदने वाले को बुलाऊंगा, शेखचिल्ली ने जवाब दिया।