असली माँ
एक बार दो स्त्रियाँ एक बच्चे के लिए झगड़ रही थीं। प्रत्येक स्त्री यह दावा कर रही थी कि वही उस बच्चे की असली माँ है। जब किसी तरह झगड़ा नहीं सुलझा तो लोगों ने उन दोनों को न्यायधीश के सामने पेश किया।
न्यायधीश ने ध्यानपूर्वक दोनों की दलीलें सुनीं। न्यायधीश के लिए भी यह निर्णय करना मुश्किल हो गया कि बच्चे की असली माँ कौन थी। न्यायधीश ने बहुत सोच-विचार किया। अखिरकार उसे एक उपाय सूझा। उसने अपने कर्मचारी को आदेश दिया, ”इस बच्चे के दो टुकड़े कर दो और एक-एक टुकड़ा दोनों स्त्रियों को दे दो।“
न्यायधीश का आदेश सुनकर उनमें से एक स्त्री ने धाड़ मारकर रोते हुए कहा,
”नहीं, नहीं! ऐसा जुल्म मत करो। दया करो सरकार। भले ही यह बच्चा इसी स्त्री को दे दो, लेकिन मेरे लाल को जिंदा रहने दो! मैं बच्चे पर अपना दावा छोड़ देती हूँ।“
पर दूसरी स्त्री कुछ नहीं बोली। वह चुपचाप यह सब देखती रही।
अब चतुर न्यायधीश को मालूम हो गया था कि बच्चे की असली माँ कौन है। उसने बच्चा उस स्त्री को सौप दिया, जो उस पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार थी। उसने दूसरी स्त्री को जेल भेज दिया।
शिक्षा -सच्चाई की सदा विजय होती है।