गँवार किसान

गँवार किसान

एक किसान था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था। वह अकसर लोगों को अखबार व किताबें पढ़ने के लिए चश्मा लगाते देखा करता था। वह सोचता, अगर मेरे पास भी चश्मा होता, तो तैं भी इन लोगो की तरह पढ़ सकता। मुझे भी शहर जाकर अपने लिए चश्मा खरीद लाना चाहिए।

एक दिन वह शहर गया। चश्मे की एक दुकान में पहुँचकर उसने दुकानदार से कहा कि मुझे पढ़ने के लिए चश्मा चाहिए। दुकानदार ने उसे तरह-तरह के चश्मे दिखाए। उसने पढ़ने के लिए उसे एक पुस्तक भी दी। किसान ने एक-एक कर अनेक चश्मे लगाकर देखे। पर वह कुछ भी नही पढ़ सका। उसने दुकानदार से कहा, इसमें से कोई भी चश्मा मेरे काम का नहीं है।

दुकानदार ने शंकाभरी नजर से किसान की ओर देखा। फिर उसकी नजर किताब पर पड़ी। किसान ने किताब उल्टी पकड़ रखी थी।
दुकानदार ने कहा, शायद तुम्हे पढ़ना नहीं आता?

किसान ने कहा, मुझे पढ़ना नहीं आता। इसीलिए तो मैं चश्मा खरीद रहा हूँ, ताकि दूसरों की तरह मैं भी पढ़ सकूँ। पर इनमें से किसी भी चश्मे से मैं पढ़ नही पा रहा हूँ
दुकनदार को अपने अनपढ़ ग्राहक की असली परेशानी का पता चला, तो वह बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक सका।

उसने किसान को समझाते हुए कहा, मेरे दोस्त, तुम बहुत भोले और अज्ञानी हो। सिर्फ चश्मा लगा लेने भर से किसी को पढ़ना-लिखना नहीं आ जाता! चश्मा लगाने से सिर्फ साफ-साफ दिखाई देने लगता है। पहले तुम पढ़ना-लिखना तो सीखो। फिर तुम्हें बिना चश्मे के भी पढ़ना आ जाएगा।

शिक्षा – अज्ञान ही अंधत्व है।