गधे की परछाई

गधे की परछाई

गर्मियो के दिन थे। तेज धूप में एक यात्री को एक गाँव से दूसरे गाँव जाना था। दोनो गाँव के बीच एक निर्जन मैदान था यात्री ने किराए पर एक गधा ले लिया। गधा आलसी था। वह चलते चलते बार बार रूक जाता था। इसलिए गधे का मालिक उसके पीछे पीछे चल रहा था। जब गधा रूकता तो वह उसे डंडा मारता गधा फिर आगे चलने लगता था।

चलते चलते दोपहर हो गई। आराम करने के लिए वे रास्ते में रूक गए वहाँ आस पास कोई छाया नही थी।
इसलिए यात्री गधे की परछाई मे बैठ गया।

गर्मी के कारण गधे का मालिक भी बहुत थक गया था। वह भी गधे की परछाई में बैठना चाहता था। इसलिए उसने यात्री से कहा, “देखो भाई यह गधा मेरा है। इसलिए गधे की परछाई मेरी है। तुमने केवल गधे को किराए पर लिया है उसकी परछाई से हमारा कोई सौदा नही हुआ है। इसलिए मुझे गधे की परछाई में बैठने दो।”

यात्री ने कहा, “मैंने पूरे दिन के लिए गधे को किराए पर लिया है।

इसलिए पूरे दिन गधे की परछाई का उपयोग करने का भी मेरा ही अधिकार है। तुम गधे से उसकी परछाई को अलग नही कर सकते”
दोनो आदमी आपस में झगड़ने लगे फिर उनमे मारपीट शुरू हो गई।
इतने में गधा भााग खड़ा हुआ। वह अपने साथ अपनी परछाई भी ले गया।

शिक्षा -छोटी छोटी बातो पर लड़ना अच्छा नही।