बारहसिंगे के सींग और पाँव
एक बारहसिंगा था। एक बार वह तालाब के किनारे पानी पी रहा था। इतने में उसे पानी में अपना प्रतिबिंब दिखाई दिया। उसने मन-ही-मन सोचा, मेरे सींग कितने सुंदर हैं। किसी अन्य जानवर के सींग इतने सुंदर नहीं हैं। इसके बाद उसकी नजर अपने पैरों पर पड़ी। उसे बहुत दुख हुआ।
मेरे पैर कितने दुबले-पतले और भद्दे हैं। तभी उसे थोड़ी दूर पर बाघ के दहाड़ने की आवाज सुनाई दी।
बारहसिंगा डरकर तेजी से भागने लगा। उसने पीछे मुड़कर देखा। बाघ उसका पीछा कर रहा था। वह और तेज गति से भागने लगा। भागते-भागते वह बाघ से बहुत दूर निकल गया। आगे एक घनघोर जंगल था। वहाँ पहुँचकर उसे कुछ राहत मिली।
वह अपनी गति धीमी कर सावधानी पूर्वक आगे बढ़ने लगा। एकाएक उसके सींग एक पेड़ की डालियों में उलझ गए। बारहसिंगे ने अपने सींग छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर वे नहीं निकले।
उसने सोचा, ओह! मैं अपने दुबले-पतले और भद्दे पैरो को कोस रहा था। पर उन्हीं पैरों ने बाघ से बचने में मेरी मदद की मैंने अपने सुंदर सींगों की बहुत तारीफ की! पर ये ही सींग अब मेरी मृत्यु का कारण बनने वाले हैं। इतने में बाघ दौड़ता हुआ आ पहुँचा उसने बारहसिंगे को मार डाला।
शिक्षा -सुंदरता से उपयोगिता अधिक महत्त्वपूर्ण होती है।