कौए और कबूतर

कौए और कबूतर

एक किसान के खेत में रोज कौओं का एक विशाल झुंड आ जाता था। इससे उसकी खड़ी फसल का बहुत नुकसान होता था। किसान इन कौओं से परेशान हो गया था। आखिर उसने क्रुद्ध होकर कौओं को सबक सिखाने का निश्चय किया।

एक दिन उसने अपने खेतो में जाल बिछा दिया। जाल के ऊपर उसने अनाज के कुछ दाने बिखेर दिए। कौओ की नजर दानों पर पड़ी। ज्योंही वे दाने चुगने के लिए नीचे उतरे, सब-के-सब जाल में फँस गए। किसान जाल में फँसे कौओं को देखकर बहुत खुश हुआ। उसने कहा, अच्छा हुआ चोरों, अब मैं तुम में से किसी को नहीं छोड़ूगा। तभी किसान को एक करुण अवाज सुनाई दी। उसे सुनकर किसान को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने ध्यान से जाल में देखा। कौओं के साथ उसमें एक कबूतर भी फँसा हुआ था।

किसान ने कबूतर से कहा, अरे इस टोली में तू कैसे शामिल हो गया? पर मैं तुम्हें भी छोड़नेवाला नही हूँ। बुरे लोगों की संगती का फल तुम्हे भोगना ही पड़ेगा। फिर किसान ने अपने शिकारी कुत्तों को इशारा कर दिया। कुत्ते दौड़ते हुए आ पहुँचे और उन पक्षियों पर टूट पड़े। एक-एक कर उन्होंने सबका काम तमाम कर दिया।

शिक्षा -बुरे लोगों की संगती दुखदायी होती है।