आओ मियाँजी, छप्पर उठाओ

आओ मियाँजी, छप्पर उठाओ

एक मियाँजी यात्रा करते हुए गाँव के किसी किसान के घर रुक गए। मियाँ बातें बनाने में बढ़े-चढ़े थे, पर काम में निरे आलसी। वे किसान के दालान में बैठ पान लगा-लगाकर खाते रहे। उस दिन किसान को अपना छप्पर उठवाना था। देहात में छान (छप्पर) बहुत बड़ी न हुई तो जमीन पर बना ली जाती है, फिर उठाकर ऊपर रख देते हैं। उसके उठाने में पाँच-दस आदमी लगते हैं। काम दस मिनट का होने पर भी जरा मेहनत का होता है। एक मुहावरा भी है-‘‘इतने आदमियों को बुला रहे हो, कोई छान उठवानी है ?’’ किसान ने मियाँजी से कहा, ‘‘आओ, मियाँजी, छान उठवाओ।’’

मियाँजी बोले, ‘‘हम बूढ़े हैं, कोई जवान बुलाओ।’’

छप्पर (छान) तो उठ ही गई। खाने का वक्त होने पर किसान ने मियाँजी से कहा, ‘‘आओ मियाँजी, खाना खाओ।’’ वह तुरंत तैयार हो गए। बोले, ‘‘लाओ, हाथ धुलाओ।’’

मियाँजी ने खाने के वक्त नहीं कहा कि हम बूढ़े हैं, कोई जवान बुलाओ।

इससे मिलता-जुलता एक दोहा है-

रामभजन को आलसी, भोजन को हुसियार।
तुलसी ऐसे नरन को, बार-बार धिक्कार।।