चतुर खरगोश

चतुर खरगोश

एक जंगल में शेर और अन्य प्राणियों के बीच समझौता हुआ था। शेर के भोजन के लिए रोज एक प्राणी को उसकी गुफा में जाना पड़ता था। एक दिन एक खरगोश की बारी आई। उसे शेर के भोजन के समय तक उसकी गुफा में पहुँचना था। खरगोश बहुत चतुर था। उसने दुष्ट शेर को खत्म करने की योजना बनाई।

खरगोश जानबूझकर बहुत देर से शेर के पास पहुँचा। अब तक शेर के भोजन का समय बीत चुका था। उसे बहुत जोर की भूख लगी थी। इसलिए खरगोश पर उसे बहुत गुस्सा आया।
”तुमने आने में इतनी देर क्यो कर दी?“ शेर ने गरजते हुए पूछा।
”महराज, क्या करूँ?“ खरगोश ने बहुत ही नम्रतापूर्वक जवाब दिया,
”रास्ते में एक दूसरा शेर मिल गया था। वह मेरा पीछा करने लगा। बहुत मुश्किल से मैं उससे पिड छुड़ाकर यहाँ आ पाया हूँ।“
”दूसरा शेर? और वह भी इस जंगल में?“ शेर ने गरजते हुए पूछा।
”हाँ महाराज, दूसरा शेर! वह कहाँ रहता है, यह मुझे मालूम है। आप मेरे साथ चलिए। मैं आपको अभी दिखता हूँ।“ खरगोश ने कहा। शेर खरगोश के साथ तुरंत ही चल पड़ा। खरगोश उसे एक कुएँ के पास ले गया और बोला, ”महराज, यहाँ रहता है वह। आइए, अंदर देखिए।“ शेर ने कुँए में झाँककर देखा। पानी में उसे अपनी ही परछाईं दिखाई दी। उसने उस परछाईं को ही दूसरा शेर समझ लिया और गुस्से में आकर जोर से गर्जना की। उसने देखा कि कुँए का शेर भी उसकी ओर देखकर दहाड़ रहा है। तब शेर अपने गुस्से पर काबू न रख सका। उसने कुएँ में छलाँग लगा दी और पानी में डूबकर मर गया। इस तरह शेर का अंत हो गया।

शिक्षा -बुद्धि ताकत से बड़ी होती है।