ब्राह्मण और तीन ठग

ब्राह्मण और तीन ठग

एक दिन सबेरे-सबेरे एक ब्राह्मण सुनसान रास्ते से जा रहा था। उसके साथ एक बकरी भी थी। तीन ठगों की नजर ब्राह्मण और उसकी बकरी पर पड़ी।
एक ठग ने कहा, “चाहता हूँ कि इस मोटी-ताजी बकरी को किसी तरह हथिया लिया जाए।”
दूसरे ठग ने कहा, “चलो, हम बकरी छीनकर भाग चलें। यह मोटू ब्राह्मण हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।”
तीसरे ठग ने कहा, “नहीं, बकरी छीनकर भागने की कोई जरूरत नहीं है! मैंने एक अच्छी तरकीब सोच ली है।” फिर उसने वह तरकीब अपने साथियों को बताई। दोनों ठगों ने अपने साथी की योजना सुनी तो वे खुशी से उछल पड़े। उन्होंने उसी तरकीब से ब्राह्मण की बकरी ले लेने का निश्चय किया।
योजना के अनुसार एक ठग ने ब्राह्मण से जाकर कहा,”पंडितजी, प्रणाम! आपका यह कुत्ता तो बहुत अच्छा है। क्या यह शिकारी कुत्ता है?”
ब्राह्मण को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने कहा, “अरे बेवकूफ, चल दूर हट! कितने शर्म की बात है कि तू बकरी को कुत्ता कहता है।”
“क्या आपके इस कुत्ते को मैं बकरी कहूँ, तो आप मुझे बुद्धिमान मानेंगे? हाऽऽ! हाऽऽऽ! हाऽऽऽऽ!” हँसता हुआ वह ठग चला गया।
थोड़ी देर के बाद दूसरा ठग ब्राह्मण के पास आया। उसने ब्राह्मण से कहा, “प्रणाम पंडितजी! ताजुब्ब है! आपके पास सवारी के लिए इतना मजबूत टट्टू है, फिर भी आप इसके साथ-साथ पैदल जा रहे हैं!”

ब्राह्मण ने कहा, “हे भगवान! अरे, क्या तुम्हें यह बकरी टट्टू दिखाई दे रही है?”
ठग ने कहा, “मैं तो समझ रहा था कि आप कोई विद्वान ब्राह्मण होंगे, पर आप तो सनकी लगते हैं। आपको तो टट्टू और बकरी में कोई फर्क ही नजर नहीं आता!” यह कहते हुए वह ठग भी चलता बना।

कुछ समय के बाद तीसरा ठग ब्राह्मण के पास आया। उसने कहा, “पुरोहित जी, प्रणाम! अरे आप इस गधे को कहाँ लिए जा रहे हैं?”
यह सुनकर ब्राह्मण चकरा गया उसने कहा,”यह गधा है?”
“बिल्कुल! गधा ही तो है यह!” ठग ने दावे के साथ कहा।

यह सुनकर ब्राह्मण घबरा गया। उसे लगा कि उसकी बकरी वास्तव में कोई पिशाचिनी है। वह समय-समय पर अपना रूप बदलती रहती है। इसलिए ब्राह्मण बकरी को वहीं छोड़कर भाग खड़ा हुआ।
यह देखकर तीनों ठग बहुत खुश हुए। वे खशी-खुशी बकरी को लेकर चलते बने।

शिक्षा -लोगो की बातें सुनकर अपनी धारणा मत बदलो।