सिकन्दर महान की जीवनी
सिकंदर महान का जन्म 20 जुलाई 356 ईसा-पूर्व को पेलामेसेडाॅन युनान में हुआ था। वह मेसेडोनिया का ग्रीक प्रशासक था। इतिहास में सिकंदर सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया। अपनी मृत्यु तक सिकन्दर उस तमाम भूमि को जीत चुका था जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी। इसलिए उसे विश्वविजेता भी कहा जाता है। सिकंदर के पिता का नाम फिलीप द्वितीय और माता का नाम ओलंपियाज था।
सिकंदर ने अपने कार्यकाल में ईरान, सिरिया, मिस्त्र, मेसोपोटामिया, फिनिशिया, जुदेया, गाजा, बेक्ट्रीया और भारत में पंजाब तक के प्रदेशों पर विजय हासिल की थी। सिकंदर ने सबसे पहले ग्रीक राज्यों को जीता और फिर एशिया, म्यांमार आधुनिक तुर्की की तरफ बडा।
उस क्षेत्र पर उस समय फारस का शासन था। फारसी साम्राज्य मिस्त्र से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। फारस के शहदारा तृतीय को तीन अलग-अलग युद्धों में पराजित किया। हांलाकि उसकी तथाकथित विश्वविजय फारस विजय से अधिक नहीं थी। उसे शहदारा के अलावा अन्य स्थानीय प्रोतापाले से भी युद्ध करना पडा था। मिस्त्र, बेकट्रिया तथा आधुनिक तजाकिस्तान में स्थानीय प्रतिरोध का सामना करना पडा था।
भारत में सिकंदर का पुरू से युद्ध हुआ, जिसमें पुरू की हार हुई। भारत पर सिकंदर के आक्रमण के समय चाणक्य तक्षिला में अध्यापक थे। तक्षिला और गांधार के राजा आमीन ने सिकंदर से समझौता कर लिया। चाणक्य ने भारत की संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से आग्रह किया किन्तु सिकंदर से लडने कोई नहीं आया।
पूरू ने सिकंदर से युद्ध किया था किन्तु हार गया। मगध के राजा महापदमानन्द ने चाणक्य का साथ देने से मना कर दिया और चाणक्य का अपमान भी किया। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को साथ लेकर एक नये साम्राज्य की स्थापना की और सिकन्दर द्वारा जीते गये राज्य पंजाब के राजदूत सेक्युकस को हराया।
सिकंदर के आक्रमण के समय सिंधु नदी घाटी के नीचले भाग में विशिविगण के पडोस में रहने वाले एक गण का नाम अगल रसाई था, सिकंदर जब सिंधू नदी के मार्ग से भारत में वापस लौट रहा था तो इस घर के लोगो से उसका मुकाबला हुआ। अगल रसोई लोगों ने सिकंदर से जमकर लोहा लिया, उनके तीर से सिकंदर घायल भी हो गया।
लेकिन अन्त में विजय सिकंदर की ही हुई। उसने मसक दूर्ग पर अधिकार कर लिया। और भयंकर नरसंहार के बाद अगल रसोई लोगों का दमन कर दिया। भारतीय सैन्य बल अपने परम रूप में राजा पोरस की सेना में दिखाई दिये जो सिकंदर का सबसे शक्तिशाली शत्रु था।
उसने अर्यन के अनुमान के अनुसार 30,000 पैदल सिपाहीयों, 4,000 घुड सवारों, 300 रथों और 200 हाथियों की सेना लेकर सिकंदर का मुकाबला किया। उसकी पराजय के बाद भी सिकंदर को उसकी तरफ मैत्री का हाथ बढ़ाना पड़ा।
अगल रसोई जाति के लोगों ने 40,000 पैदल सिपाहीयों और 3000 घुड सवारों की सेना लेकर सिकंदर से टक्कर ली। कहा जाता है कि उनके एक नगर के 20,000 निवासीयों ने अपने आपको बंदियों के रूप् में शत्रुओ के हाथों में समर्पित करने के बजाय बाल बच्चों सहित आग में कूद कर प्राण दे देना ही उचित समझा।
सिकंदर को कई स्वायत्त जातियों के संघ के संगठित विरोध का सामना करना पडा जिनमें मालव तथां शूद्रक आदि जातियां थी। जिसकी संयुक्त सेना में 90,000 पैदल सिपाही 10,000 घुड सवार और 900 से अधिक रथ थे। उनके ब्राम्हणों ने भी पढने लिखने का काम छोडकर तलवार संभाली और रण क्षेत्र में लडते हुए मारे गये। बहुत ही कम लोग बंदी बनाये जा सके।
325 ई.पू में सिकंदर भारत की भूमि छोडकर बेबीलोन चला गया। तैतीस साल की उम्र में बेबीलोन में उसकी मृत्यु हो गयी। सिकन्दर इतिहास में Alexander third, Alexander the great, और Alexander the great empire के नाम से भी जाना जाता है।