अनुपमा – 22

 

इस वक्त शाम के 5 बज रहे थे और राघव अपने ऑफिस मे बैठा विशाल से फोन पर बात कर रहा था वही विशाल उसकी बातों से परेशान हो गया था, एक तो वो कुछ घंटों पहले ही लंदन पहुचा था और काफी ज्यादा थका हुआ था ऊपर से जेटलैग, उसे काफी ज्यादा नींद आ रही थी और राघव उसे फोन पर अपने और अनुपमा के बीच हुई कल वाली पूरी बात सुना रहा था

विशाल- चलो अच्छा है तुम दोनों मे से किसी को तो अक्ल आई कोई तो पहल कर रहा है

राघव- अबे वो तो ठीक है पर मुझे क्या लगता है भाई वो ना मेरे मन की बात सुन लेती है, उसने तो मेरे बगैर बोले ही वो दोस्ती वाला प्लान फेल कर दिया

विशाल- जब आदमी प्यार मे होता है तो ऐसा होता है दूसरे के मन की बात सुनाई देती है तू मुन्ना भाई एमबीबीएस नहीं देखा क्या ज्यादा मत सोच जो हो रहा है होने दो

राघव- मैं भी तो यही चाहता हु लेकिन साला जब भी उसके करीब जाने की कोशिश करता हु मेरा पास्ट मुझे रोक देता है डरता हु कही वो…. मैं दोबारा उस सब से नहीं गुजरना चाहता भाई…. तेरे को पता है मैं शेखर की शादी मे भी नहीं था ऐसा नहीं था के मैं उससे भाग रहा था लेकिन वहा भी मेरा पास्ट बीच मे आया था, पर अब बस बहुत हो गई भागा दौड़ी अब मुझे उसके साथ रहना है, पसंद करने लगा हु मैं उसे और चाहे कुछ हो जाए मैं उसका साथ नहीं छोड़ने वाला और मैं जानता हु के वो भी अब पीछे नहीं हटेगी।

विशाल- शाबाश! अब मजनू साहब आपका ये इजहार ए इश्क अपनी बीवी के सामने जाकर करिए और मुझे सोने दीजिए

राघव- हा हा पता है थका हुआ है तू जा सोजा मुझे भी घर जल्दी जाना

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अगले दिन पूरे देशपांडे निवास में हलचल थी सुबह से ही पूजा की धूम सारे घर मे देखि जा सकती थी और गायत्री जी खुद सारे काम को देख रही थी।

गायत्री- अरे वो फूल यहा नहीं वहा लगाने है

दादी ने एक वर्कर से कहा जो गलत जगह फूल लगा रहा था

गायत्री- ये धनंजय कहा है? रमाकांत तुम जाओ और जाकर पंडित जी को ले आओ सिर्फ ड्राइवर को भेजना सही नहीं लगेगा

इतने मे धनंजय जी वहा आ गए

गायत्री- धनंजय तुमने प्रसाद के लिए मिठाई मँगवा ली थी न?

धनंजय- हा मा मैं बस वही कॉल करके पूछ रहा हु

गायत्री- हे भगवान अब तक क्या कर रहे थे फिर तुम, जाओ जल्दी देखो मेहमान आते होंगे

घर मे अगर कोई फंक्शन हो तो गायत्री जी को वो हमेशा परफेक्ट चाहिए होता है बस इसीलिए वो सारे कामों को खुद देख रही थी

गायत्री- जानकी श्वेता भगवान के भोग का प्रसाद बन गया?

दादी ने किचन मे आते हुए पूछा

जानकी- हा माजी बस हो ही गया है

इतने मे दादी ने देखा के दादू धीमे से किचन मे घुस रहे है और वो बस प्रसाद को छूने ही वाले है के

गायत्री- आप यहा क्या कर रहे है? अरे भगवान को भोग तो लगने दीजिए अब बच्चे थोड़ी हो आप बुढ़ापे मे ऐसी हरकते शोभा देती है क्या

दादी वही अपनी बहुओ के सामने दादू की क्लास लेने लगी और फिर उन्होंने पीछे पलट के देखा तो विवेक और रिद्धि वहा खड़े हस रहे थे तो उनकी भी क्लास लग गई

गायत्री – तुम दोनों वहा क्या हस रहे हो तुमको कुछ काम बताए थे न मैंने वो हो गए ?

“बस वही कर रहे है दादी बाय” दोनों ने एकसाथ कहा और सटक गए वहा से क्युकी रुक कर दादी की डांट थोड़ी खानी थी उन्हे

गायत्री- अनुपमा…!!!

अनुपमा- जी दादी

गायत्री- बेटा तुम्हारा बस एक काम है, तुम अभी ऊपर जाओ और तुम्हारे पति को नीचे लेकर आओ, बस यही सबसे मुश्किल काम तुम्हारे जिम्मे है

अनुपमा- जी दादी जी मैं बस उन्हे बुलाने जा ही रही थी

गायत्री- मीनाक्षी तुम मेरे साथ आओ मंदिर के पास कुछ काम बचा है

इतना बोल कर वो वहा से चली गई
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अनुपमा मुस्कुराते हुए सीढ़िया चढ़ कर अपने कमरे तक आई और उसने बगैर नॉक किए दरवाजा खोल दीया और जैसे ही दरवाजा खुला और उसकी नजर राघव पर पड़ी वो हल्की सी बस हल्की की आवाज मे चीखी

अनुपमा- आपके नीचे का कहा है..!!!!

अनुपमा अपने आंखे बड़ी करके चीखी और झट से मूड गई क्यू? क्युकी राघव वह बस अपना कुर्ता पहने खड़ा था और बस कुर्ता ही उसने पहन रखा तथा और पजामा उसके हाथ मे था

क्या करू मैं इनका कभी ऊपर का नहीं कभी नीचे का नहीं अनुपमा ने मन ही मन सोचा

वही अनुपमा को देख के राघव को भी अपनी सिचूऐशन का अंदाजा हो गया

राघव- तुम… तुम दरवाजा नॉक नहीं कर सकती क्या?

राघव ने चिल्ला के पूछा बदले मे अनुपमा ने भी सेम टोन मे जवाब दिया

अनुपमा- आप दरवाजा लॉक नहीं कर सकते क्या?

और अनुपमा के चिल्लाते ही राघव का सारा रौब हवा हो गया

अनुपमा- मुझे.. मुझे नहीं पता था आप ऐसे नंग… ऐसे होंगे.. जाती हु मैं

और अनुपमा वहा से जाने ही वाली थी के इतने मे ही

राघव- रुको!

राघव ने अनुपमा को रोका और वो रुक गई जिसके बाद राघव आगे बोला

राघव- देखो मैं जानता हु के ये तुम्हारे लिए नया है लेकिन मैं भी सेम फ़ील कर रहा हु

राघव जो कुछ कह रहा था अनुपमा सुन रही थी लेकिन वो पलटी नहीं

राघव- मैंने ये कभी किया नहीं है इसीलिए कोशिश करके देख रहा था पर अकेले नहीं हो पा रहा मुझसे…

अब राघव को जो कहना था वो तो उसने कह दिया लेकिन अनुपमा के दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे और उसके दिमाग मे अलग अलग चित्र विचित्र खयाल आने लगे

अनुपमा- ये.. ये क्या कह रहे है आप..

राघव- मेरी मदद कर दो यार मैं किसी से नहीं कहूँगा प्रामिस

अनुपमा- मैं… मैं कैसे आपकी मदद कर सकती हु?

अनुपमा अब नर्वस होने लगी थी

राघव- अरे यार परेशान हो गया हु मैं और बस एक तुम ही हो जो मेरी मदद कर सकती हो आखिर तुम मेरी पत्नी हो

बस राघव का इतना कहना था के अनुपमा की आंखे चौड़ी हो गई

अनुपमा- ये… ये कैसी.. बाते कर रहे है आप

राघव- कैसी मतलब? अरे यार देखो मैं जानता हु ये थोड़ा ऑक्वर्ड है पर आदत हो जाएगी और तुम मुझे सीखा देना कैसे करना है

अब राघव कुछ और कह रहा था लेकिन अनुपमा के दिमाग मे उसके शब्द कोई और ही फिल्म बना रहे थे

अनुपमा- देखिए… ये सही नहीं है

राघव- अरे सब सही है कुछ गलत नहीं है अच्छा एक काम करो दरवाजा लॉक कर दो ताकि कोइ देख ना सके

अनुपमा- बस! बहुत हुआ! आप ऐसे डायरेक्ट कैसे कह सकते है आपको शर्म नहीं आई ये कहते !

राघव- हह? अबे नाड़ा डलवाने मे कैसी शर्म??

अब अनुपमा के दिमाग की बत्ती जली

अनुपमा- नाड़ा? ओह आप नाड़े की बात कर रहे थे ?

अनुपमा ने एक नर्वस स्माइल के साथ पूछा

राघव- हा और नहीं तो क्या..

और अनुपमा के बिहेवियर पर राघव अब भी कन्फ्यूज़ था और जैसे ही उसके दिमाग की बत्ती जाली और उसको पूरा सीन ध्यान मे आया वैसे ही उसकी आंखे बड़ी हो गई

राघव- अबे पागल औरत तुम्हारा दिमाग कहा तक पहुच गया यार!!!

वही अनुपमा भी काफी ज्यादा शर्मिंदा थी, उसने दरवाजा बंद किया और उसके पास आई और उसके हाथ से नाड़ा लेकर पजामे मे डालने लगी

वही राघव उसकी तरफ देख भी नहीं रहा था, अनुपमा ने जल्दी से पजामा राघव को दिया और बोली

अनुपमा- सब लोग आपका नीचे इंतजार कर रहे है जल्दी आइए

और इतना बोल के अनुपमा जल्दी से वहा से निकल गई वही राघव बस उसे जाते हुए देखता रहा

इसने अपने दिमाग के घोड़े कहा तक दौड़ा लिए थे यार राघव ने सोचा और अपना सर झटक दिया

गायत्री- जानकी जाओ और वो फलों की टोकरी ले आओ जो मैंने कहा था तुमसे, आज राघव और अनुपमा बैठेंगे पूजा मे..

गायत्री जी की बात सुन जानकी जी ने अपना सर हा मे हिलाया इतने मे राघव वहा आ गया

गायत्री- राघव जल्दी जाओ और वहा जाकर बैठो, इतना समय लगाता है क्या कोई? अनुपमा तुम भी जाओ उसके साथ

दादी की बात सुन राघव झट से जाकर दादी की बताई जगह पर बैठ गया, राघव और अनुपमा दोनों ने एकदूसरे को देखा लेकिन फिर शर्म से अपनी नजरे घुमा ली, अनुपमा के गाल गाल होने लगे थे और उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे जमी हुई थी

विवेक- भाभी क्या हुआ? तबीयत ठीक है आपकी?

विवेक को अनुपमा के बाजू मे बैठा था उसने पूछा बदले मे अनुपमा ने बस मुंडी हिला कर सब सही है कहा

विवेक- तो फिर आपको इतना पसीना क्यू आ रहा है?

अनुपमा- वो… वो गर्मी.. हा गर्मी बहुत हो रही ना यहा इसीलिए

अनुपमा ने जैसे तैसे जवाब दिया और अपने हाथ से हवा करने लगी वही विवेक उसे घूर के देखने लगा और फिर उसने राघव को देखा और इशारे को क्या हुआ पूछा, वही विवेक के सवाल बंद हो गए है देख अनुपमा ने एक राहत की सास ली और तभी उसे ऐसा लगा किसी ने उसके हाथ को झटके के खिचा हो, उसने देखा के किसने खिचा है तो वो राघव था फिर अनुपमा ने इशारे से राघव ने क्या हुआ पूछा तब राघव उसके करीब आया और उसके कान मे बोला

राघव- मिसेस देशपांडे यहां एसी और पंखे दोनों चल रहे है और उससे भी बड़ी बात हवा से आपके बाल उड़ रहे है तो थोड़ा ढंग का बहाना बनाओ..

और बोलते बोलते राघव ने उसके बालों की एक लट उसके कान के पीछे कर दी

राघव की इस हरकत से अनुपमा वही जम गई उसका वो टच और उसके मुह से अपने लिए मिसेस देशपांडे सुनना उसे अच्छा लगा था..