‘जैसे ही उसने उस धीमी रोशनी वाले कमरे मे कदम रखा उसे अपने ऊपर किसी की आखे जमी हुई महसूस हुई जो सीधे उसके दिल को भेद रही थी, वो जानती थी के वो खतरनाक है लेकिन फिर भी उससे दूर नाही जा पा रही थी, उसके खिचाव से अपने आप को बचा नही पा रही थी, उसका चलना उसके बात करने का तरीका मानो पूरी दुनिया उसके कदमों मे हो.. उसे अपनी ओर खीच रहा था
“तुम्हें यहा नही आना चाहिए था” वो हल्की आवाज मे गुराया
“मैं.. मैं बस तुम्हें देखना चाहती थी, अब और दूर नही रहा जाता” उसने उसकी आँखों से आंखे डाल कर कहा
धीरे धीरे वो उसकी ओर बढ़ने लगा’ लेकिन तभी
“दीदी” इस आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ और उसने सर उठा कर दरवाजे की तरफ देखा, आज फिर कोई उसके नॉवेल मे खलल डाल गया था
ये है हमारी कहानी की नायिका, अनुपमा एक खूबसूरत और उतनी ही सुलझी हुई लड़की, अनुपमा के माता पिता अब इस दुनिया मे नही रहे इसीलिए 10 साल की उम्र से ही अपने चाचा चाची के साथ ही रही है, उसके चाचा चाची ने भी अनुपमा को अपनी सगी बेटी से भी ज्यादा प्यार किया है, शिवशंकर ने राघव के लिए अनुपमा को चुना था, अनुपमा को उन्होंने एक चैरिटी ईवेंट मे देखा था जहा उन्हे वो देखते साथ ही राघव के लिए पसंद आ गई थी।
अनुपमा एक मिडल क्लास फॅमिली से बिलॉंग करती थी और जब शिवशंकर ने उसके चाचा चाची से अनुपमा का हाथ मांगा तब वो लोग काफी खुश हुए और आज शाम ही वो लोग उनके घर मिलने आने वाले थे जिसकी खबर देने ही अनुपमा का भाई अभी अभी उसके नॉवेल मे उसे डिस्टर्ब करने आया था..
अनुपमा- ऑफफो सचिन संडे के दिन तो आराम से नॉवेल पढ़ने दिया करो
सचिन- नॉवेल छोड़ो दीदी काम की बात सुनो पहले, मा आपको नीचे बुला रही है
अनुपमा- हा चाची से कहो आ रही हु
कुछ समय बाद अनुपमा अपने चाचा चाची के सामने हॉल मे बैठी थी
संगीता ( अनुपमा की चाची ) – अनुपमा बेटे तुम्हारे लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता आया है..
अनुपमा को कुछ पल तो क्या रिएक्शन दे समझ ही नही आया वो कुछ नाही बोली
संगीता – अनुपमा बेटा बहुत अच्छे परिवार से खुद चल कर रिश्ता आया है, वो लोग आज शाम मे आ रहे है तुमसे मिलने
अनुपमा – लेकिन चाची मैं अभी शादी नही करना चाहती, मुझे मेरी डांस एकेडमी खोलनी है उसमे करिअर बनाना है,
सतीश- वो सब तो बेटा शादी के बाद भी हो जाएगा, देशपांडे जी के परिवार से रिश्ता आया है, शिवशंकर देशपांडे जी के बड़े पोते का, एक बार उन लोगों से मिल लो
अनुपमा – ठीक है चाचू…
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उसी दिन शाम को शिवशंकर देशपांडे और घर के बाकी लोग अनुपमा और उसके परिवार से मिल आए सबको अनुपमा और उसके घरवाले सही लगे थे और जब वो मिल कर लौट रहे थे तब गाड़ी मे..
शिवशंकर- क्या हुआ गायत्री क्या सोच रही हो ?
गायत्री – सोच रही हु के क्या एक छोटे से मिडल क्लास परिवार की लड़की हमारे घर को संभाल पाएगी? कही कुछ ज्यादा जल्द बाजी तो नाही न हो रही ?
शिवशंकर- तुम भी तो छोटे परिवार से ही थी लेकिन तुमने तो सब संभाल लिया, मेरा हमेशा साथ दिया तो क्या अब मुझपर भरोसा नही रहा?
गायत्री- ऐसी बात नाही है, आप ने जब इस रिश्ते के बारे मे बताया था तभी मैं समझ गई थी के आपने कुछ तो सोचा होगा इस बारे मे लेकिन क्या राघव मानेगा ?
शिवशंकर- जरूर मानेगा और तुम देखना अनुपमा से बढ़िया और कोई लड़की नाही हो सकती राघव के लिए.
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प्रेजेंट डे
कल रात अपने दादा से बात करके जब राघव अपने रूम मे आया तो वो उनकी बातों के बारे मे ही सोच रहा था और जब उसका दिमाग सोच सोच कर थक गया तो उसने अपने जिगरी दोस्त को लंदन मे फोन लगाया
विशाल- और मेरे भाई क्या हाल है तेरे क्या मुसीबत या गई अब
राघव- मैं जब भी तेरे से बात करने फोन लगता हु तो तुझे को ऐसा क्यू लगता है के कोई मुसीबत आई होगी ?
विशाल- भाई जितना अच्छे से मैं तुझे जानता हु न कोई और नाही जानता अब बता बात क्या है
फिर राघव ने विशाल को दादू से हुई सारी बात बताई
राघव- अब बता मैं क्या करू ?
विशाल- करना क्या है शादी के लिए हा कर और क्या, राघव 3 साल बीत चुके है उस बात को कब तक उसी मे उलझा रहेगा कभी न कभी तो आगे बढ़ना ही होगा न
राघव- मैं कन्फ्यूज़ हु विशाल एक हिसाब से दादू की बात भी सही है लेकिन…
विशाल- भाई दादू ने जिसे भी तेरे लिए चुना होगा वो सही होगी, वो कभी कोई काम बगैर सोचे नाही करते है मेरी मान तो शादी के लिए हा कर दे
राघव- चल ठीक है सोचता हु इस बारे मे
विशाल- और क्या सोचा वो बताना वरना साले अड्वाइज़ लेने के लिए मुझे याद करता है तू
राघव – हा हा चल गुड नाइट
और राघव ने फोन रख दिया
राघव ने रात भी इस बारे मे खूब सोचा और अगली सुबह जल्दी ही दादू के कमरे के सामने पहुच कर उनके रूम का दरवाजा खटखटाया तो उसकी दादी ने दरवाजा खोला
राघव – गुड मॉर्निंग दादी
राघव ने मुस्कुरा कर कहा
गायत्री- गुड मॉर्निंग, अब आज सुबह सुबह तेरा चेहरा देख लिया आज मेरा दिन बहुत अच्छा जाएगा आजा अंदर आ
राघव – गुड मॉर्निंग दादू
राघव ने अंदर घुसते हुए दादू से कहा जो अखबार पढ़ रहे थे
शिवशंकर – गुड मार्निंग और आज तुम सुबह सुबह रास्ता भूल गए क्या ऑफिस की जगह यहा आए हो
राघव – वो आज मैंने छुट्टी ली है इसीलिए घर पर ही हु लेकिन आपसे जरूरी बात करनी है इसीलिए चला आया
गायत्री – अच्छा किया जब देखो तब काम मे लगा रहता है, बेटा छुट्टी भी जरूरी होती है
शिवशंकर – अरे तुम रुको जरा हा राघव तो क्या सोचा फिर तुमने
राघव – मैंने आपकी बातों पर रात भर सोचा दादू और फिर इस डिसिशन पर पहुचा हु के हा मैं तयार हु शादी के लिए
शिवशंकर – शाबास यही उमीद थी मुझे, सही डिसिशन लिया है तुमने लेकिन पहले लड़की तो देख लेते
राघव – आप लोगों ने देख ली है न बस काफी है
गायत्री – मैं नाश्ते मे मीठा बनवाती हु कुछ..
कुछ समय बाद घर के सभी लोग नाश्ते के टेबल पर जमे हुए थे
विवेक- अरे वाह आज क्या कुछ स्पेशल है क्या ?
विवेक ने टेबल पर बैठते हुए पूछा
रिद्धि – तुझे घर मे क्या चल रहा है कुछ पता भी होता है
विवेक- हा तो मेरे पीछे और भी काम होते है वैसे बता ना क्या खास है आज तो भाई भी घर पर ही दिख रहे
विवेक ने राघव की तरफ देखते हुए रिद्धि के कान मे पूछा काहे से के ये राघव के सामने मुह नाही खोलता था क्या पता घुसा पड जाए
रिद्धि- भाई ने शादी के लिए हा कर दी है
विवेक- हैं! सच मे
रिद्धि ने हा मे गर्दन हिलाई
ऐसे ही बात चित मे देखते देखते दो महीनों का समय कब बीत गया पता नाही चला लेकिन इन दो महीनो में राघव के अपने आप को काम में और ज्यादा उलझा लिया था उसने हा तो कर दी थी लेकिन कही ना कही अपने डिसीजन पर अब भी कंफ्यूज था लेकिन अब वो पीछे भी नही हट सकता था
राघव और अनुपमा की शादी तय हो चुकी थी और अब बस उनकी शादी को बस 2 दिन बचे थे लेकिन इन 2 महीनों मे राघव और अनुपमा ने 2 बार भी ठीक से एक दूसरे से बात नही की थी एक दुसरे से मिलना तो बहुत दूर की बात थी,
जहा एक तरफ अनुपमा इस शादी को लेकर थोड़ी एक्साइटेड थोड़ी नर्वस थी वही राघव अभी भी अपने डिसिशन पर कन्फ्यूज़ था लेकिन अब इस शादी को ना करने के लिए बहुत देर हो चुकी थी घर मे शादी की रस्मे शुरू हो चुकी थी, इन दो महीनों मे राघव ने अपने आप को मानो ऑफिस मे बंद कर लिया था शेखर ने भी ऑफिस जॉइन कर लिया था और उसे राघव का बिहेवियर थोड़ा खटक रहा था लेकिन जब उसने इस बारे मे राघव से बात करने की कोशिश की तब राघव ने बात पलट कर उसे काम मे उलझा दिया था
आज राघव और अनुपमा की शादी का दिन था और सुबह से ही राघव कुछ परेशान सा दिख रहा था, आज सुबह सुबह राघव को एक फोन आया था जिसके बाद उसका मूड खराब हो चुका था लेकिन अभी वो बात घर मे बता कर वो सबकी खुशी कम नही करना चाहता था
राघव ने अपने असिस्टेंट को फोन करके आज रात की उसकी फ्लाइट टिकट बुक करने कहा और बाद मे शादी की रस्मे करने चला गया
धीरे धीरे वो समय भी आया जब राघव और अनुपमा सात फेरो के बंधन मे बंध गए
अनुपमा के परिवार वाले उसकी इतने बड़े परिवार मे शादी होने से काफी खुश थे, उसके चाचा को लगा मानो उन्होंने अनुपमा के स्वर्गीय पिता का सपना पूरा कर दिया हो
रात मे अनुपमा राघव के कमरे मे उसका इंतजार कर रही थी, आज उसकी जिंदगी की नई शुरुवात होने वाली थी, अनुपमा अपने आने वाले जीवन के बारे मे सोच रही थी, पिछले दो महीनों मे अनुपमा ने इस घर के सभी लोगों को अच्छे से जाना था लेकिन वो राघव से, जो उसका जीवन साथी था उससे अभी भी अनजान थी तभी उसे दरवाजा खुलने का आवाज आया
राघव कमरे मे आ चुका था, उसने एक नजर अनुपमा की तरफ देखा और अपने रूम मे बने वॉर्ड्रोब मे चल गया और अनुपमा बस उसे जाते हुए देखती रही
कुछ समय बाद राघव चेंज करके बाहर आया तो उसके साथ उसका एक बैग भी था,
राघव ने अनुपमा की तरफ देखा और कहा
राघव- अनुपमा मैं जानता हु तुम्हारे मन मे इस वक्त कई सवाल चल रहे है और सच कहू तो मेरे भी लेकिन मैं इस वक्त यहा नही रुक पाऊँगा मुझे कुछ काम से बाहर जाना पड रहा है 2 महीनों के लिए मैं तुमसे कुछ ही घंटों मे इसे समझने की उम्मीद तो नही कर सकता लेकिन कोशिश करना और हो सके तो मुझे माफ भी..
इतना बोल कर राघव वहा से निकाल गया और जाते जाते अनुपमा की आँखों मे पानी छोड़ गया
लेकिन राघव ने ऐसा क्यू किया? किसका फोन आया था उसे जो उसे अपनी शादी की पहली रात छोड़ कर जाना पड़ा , अब अनुपमा कैसे निभाएगी अपना ये नया रिश्ता?