न्यायी राजा

न्यायी राजा

राजा विक्रम अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार वे अपने लिए एक शानदार राजमहल बनवा रहे थे। राजमहल का नक्शा तैयार हो चुका था। पर एक समस्या आड़े आ रही थी। राजमहल के निर्माण-स्थान के पास ही एक झोपड़ी थी। इस झोपड़ी के कारण राजमहल की शोभा नष्ट हो रही थी।

राजा ने झोपड़ी के मालिक को बुलवाया। उन्होंने अपनी समस्या के बारे में झोपड़ी के मालिक को बताया और झोपड़ी के बदले मोटी रकम देने का प्रस्ताव उसके सामने रखा। पर झोपड़ी का मालिक बहुत अडि़यल था। उसने राजा से कहा, “महाराज, माफ करें, आपका प्रस्ताव मुझे मंजूर नहीं है। अपनी झोपड़ी मुझे जान से भी ज्यादा प्यारी है। इसी झोपड़ी में मेरा जन्म हुआ था। मेरी पूरी उम्र इसी में गुजर गई। मैं अपनी इसी झोपड़ी में मरना भी चाहता हूँ।”

राजा ने सोचा, इस गरीब के साथ ज्यादती करना उचित नहीं है। उसने अपने मंत्री से कहा, “कोई हर्ज नहीं! इस झोपड़ी को यहीं रहने दो। जब लोग इस शानदार महल को देखेंगे, तो वे मेरे सौंदर्यबोध की सराहना अवश्य करेंगे। जब वे राजमहल के समीप इस झोपड़ी को देखेंगे, तो मेरी न्यायप्रियता की भी तारीफ करेंगें।”

शिक्षा -जियो और जीने दो