संतोष का धन

संतोष का धन

पंडित श्री रामनाथ शहर के बाहर अपनी पत्नी के साथ रहते थे | एक जब वो अपने विद्यार्थिओं को पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी ने उनसे सवाल किया ” कि आज घर में खाना कैसे बनेगा क्योंकि घर में केवल मात्र एक मुठी चावल भर ही है ?” पंडित जी ने पत्नी की और एक नजर से देखा फिर बिना किसी जवाब के वो घर से चल दिए |

शाम को वो जब वापिस लौट कर आये तो भोजन के समय थाली में कुछ उबले हुई चावल और पत्तियां देखी | यह देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा ” भद्रे ये स्वादिष्ट शाक जो है वो किस चीज़ से बना है ??” मेने जब सुबह आपके जाते समय आपसे भोजन के विषय में पूछा था तो आपकी दृष्टि इमली के पेड़ की तरफ गयी थी | मैंने उसी के पतों से यह शाक बनाया है | पंडित जी ने बड़ी निश्चितता के साथ कहा अगर इमली के पत्तो का शाक इतना स्वादिष्ट होता है फिर तो हमे चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है अब तो हमे भोजन की कोई चिंता ही नहीं रही |

जब नगर के राजा को पंडित जी की गरीबी का पता चला तो राजा ने पंडित को नगर में आकर रहने का प्रस्ताव दिया किन्तु पंडित ने मना कर दिया | तो राजा हैरान हो गया और स्वयं जाकर उनकी कुटिया में उनसे मिलकर इसका कारण जानने की इच्छा हुई | राजा उनकी कुटिया में गया तो राजा ने काफी देर इधर उधर की बाते की लेकिन वो असमंजस में था कि अपनी बात किस तरह से पूछे लेकिन फिर उसने हिम्मत कर पंडित जी से पूछ ही लिया कि आपको किसी चीज़ का कोई अभाव तो नहीं है न ??

पंडित जी हसकर बोले यह तो मेरी पत्नी ही जाने इस पर राजा पत्नी की और आमुख हुए और उनसे वही सवाल किया तो पंडित जी की पत्नी ने जवाब दिया कि अभी मुझे किसी भी तरीके का अभाव नहीं है क्योंकि मेरे पहनने के वस्त्र इतने नहीं फटे कि वो पहने न जा सकते और पानी का मटका भी तनिक नहीं फूटा कि उसमे पानी नहीं आ सके और इसके बाद मेरे हाथों की चूडिया जब तक है मुझे किसी चीज़ का क्या अभाव हो सकता है ?? और फिर सीमित साधनों में भी संतोष की अनुभूति हो तो जीवन आनंदमय हो जाता है |

राजा बड़ी श्रद्धा से उस देवी के सामने झुक गये |