अंधा घोड़ा

अंधा घोड़ा

शहर के नज़दीक बने एक फॉर्म हाउस में दो घोड़े रहते थे। दूर से देखने पर वो दोनों बिल्कुल ठीक दिखते थे, पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है। पर अंधे होने के बावजूद फॉर्म के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था। बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था।

अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता। घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता था, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं उसका साथी रास्ते से भटक ना जाए। वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता था।

दोस्तों! बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं। वो हमारा ख्याल रखते हैं, और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं। कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं। तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं॥