इस वक्त रात के 11.30 बज रहे थे, राघव अब भी अपने ऑफिस मे बैठा था और अपने और अनुपमा के बारे मे सोच रहा था, विशाल से हुई बातचित उसके दिमाग मे घूम रही थी और अब वो भी इस रिश्ते से भागते हुए थक गया था, दादू ने उसे कहा था 8 बजे घर आने लेकिन वो अब भी ऑफिस मे ही था क्युकी जिसके लिए उसे घर जल्दी जाना था वो ही उससे नाराज थी।
राघव ने एक लंबी सास छोड़ी और घर जाने के लिए निकला,
कुछ समय बाद जब राघव घर पहुचा और अंदर आया तो पूरे घर मे शांति छाई हुई थी, राघव ने इधर उधर नजरे घुमाई मानो किसी को ढूंढ रहा हो लेकिन वहा था ही कौन..
राघव अपने कमरे मे जाने के लिए सीढ़िया चढ़ने ही वाला था के उसे चूड़ियों का आवाज सुनाई दि जिससे राघव रुक गया और उसने मूड कर देखा तो वहा अनुपमा खड़ी थी जो उसकी तरफ मुस्कुराकर देख रही थी और अनुपमा को अपनी तरफ ऐसा मुसकुराता देख राघव थोड़ा चौका, वो कन्फ्यूज़ था के इसको अचानक क्या हुआ
राघव को समझ नहीं आ रहा था के ये तो घर रोते हुए आयी थी और वो इतना गधा भी नहीं था के अनुपमा के रोने का रीज़न ना जानता हो फिर अब ऐसे एकदम क्या हो गया जो उसका मूड चेंज हो गया? राघव को अनुपमा का बर्ताव समझ नहीं आ रहा था, एक पल को उसे लगा के कही उसे नशा तो नहीं हो गया लेकिन वो अच्छे खासे होश मे था और तभी अनुपमा बोली
अनुपमा- जाइए जाकर कपड़े बदल लीजिए मैं खाना गरम करती हु
राघव- मुझे भूख नहीं है
(कुछ नहीं हो सकता इसका bc अभी अभी ऑफिस मे सब सही करने का सोच रहा था और घर आते ही सारी बाते हवा कर दी )
अनुपमा ने बड़े प्यार से कहा था लेकिन राघव ने मना कर दिया लेकिन भूख तो उसे भी लगि थी बस वो अनुपमा से दोपहर की हरकत के बाद नजरे नहीं मिलाना चाहता था वही अनुपमा मुस्कुराई और फिर प्यार से बोली
अनुपमा- जाइए न, कभी तो मेरी सुन लिया कीजिए
अनुपमा ऐसे बात कर रही थी जैसे वो दोनों कोई नॉर्मल कपल हो लेकिन वो वैसे नहीं थे और यही बात राघव को कन्फ्यूज़ करे हुए थी उसके अनुपमा के ऐसे बदले बदले मिजाज समझ नहीं आ रहे थे लेकिन राघव कुछ नहीं बोला और अनुपमा की बात मान कर वो फ्रेश होकर वापिस आया तो उसने देखा के अनुपमा उन दोनों की खाने की प्लेट्स लगा रही थी
राघव जाकर डायनिंग टेबल पर बैठ गया बगैर कुछ बोले एकदम चुप चाप जिसके बाद अनुपमा ने उसे खाना परोसा और फिर खुद की प्लेट मे खाना लिया जिसे देख राघव ने पूछा
राघव- तुमने खाना नहीं खाया अभी तक?
अनुपमा- मैं आपकी राह देख रही थी
अनुपमा ने राघव से कहा और खाना शुरू किया
राघव- दोपहर मे तो तुम बड़ी नाराज थी फिर अब क्या हुआ?
अनुपमा- कुछ नहीं बस मेरा मूड ठीक हो गया अब आप खाना खाइए खाना ठंडा हो रहा है वो बाते बाद मे हो जाएंगी
जिसके बाद दोनों मे से कोई कुछ नहीं बोला दोनों ने चुप चाप खाना खाया
खाना होने के बाद अनुपमा दोनों की प्लेट्स लेकर किचन मे चली गई और जब वो वापिस आयी तो उसने कुछ ऐसा देखा जो नॉर्मल नहीं था, राघव वहा उसकी राह देखते खड़ा था और ये अनुपमा को कैसे पता चला के वो उसकी राह देख रहा है? तो भाईसहब ने अपना फोन उल्टा पकड़ा हुआ था और ऐसे जता रहा था के उसका ध्यान फोन मे है, अनुपमा उसे देख मुस्कुराई और उसके पास गई
अनुपमा- चले..!
राघव- हह.. हा वो मैं तुम्हारी राह नहीं देख रहा था वो तो मैं फोन मे थोड़ा काम देख रहा था
राघव ने बहाना बनाने की कोशिश की जिसपर अनुपमा के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने राघव का फोन सीधा करके उसके हाथ मे पकड़ाया जिससे राघव थोड़ा शर्मिंदा हुआ, वो पकड़ा जा चुका था और उसके बाद अनुपमा ने कुछ ऐसा किया जिससे राघव और भी सप्राइज़ हुआ
उसने राघव का हाथ पकड़ा और उसे लेकर अपने रूम की ओर बढ़ गई और राघव बस आंखे फाड़े उसे देखता रहा
(भाईसाहब एकदम से इतने चेंजेस )
रूम मे आने के बाद राघव ने झट से अपना हाथ अनुपमा के हाथ से छुड़ाया और बेड की ओर बढ़ गया और बेड पर जाकर सो गया
राघव सोने की कोशिश कर ही रहा था के उसे अपने बाजू मे कुछ हलचल सी होती महसूस हुई, उसने मूड कर देखा तो पाया के अनुपमा उसके बाजू मे लेट रही है और वो भी सेम रजाई मे
राघव- ये सब क्या है अब?
अनुपमा- क्या मतलब? रात है और नॉर्मल लोग सोते है रात मे
राघव- तुम तो मेरे साथ बेड शेयर करने मे कंफर्टेबल नहीं थी ना फिर अब क्या हुआ?
अनुपमा- मैंने ऐसा कब कहा था मुझे तो लगा था के आपको ये पसंद नहीं आएगा पर अब मैं सोफ़े पे नहीं सोने वाली मैं यही सोऊँगी जहा एक पत्नी को होना चाहिए।
अनुपमा ने बोलते बोलते राघव को आँख मार दी नतिजतन राघव की आंखे बड़ी हो गई और उसने नजरे घुमा ली और दोनों के बीच सेफ डिस्टन्स बनाया और मूड गया
कुछ सेकंड बाद उसे उसकी कमर पर एक हाथ फ़ील हुआ और उस टच से राघव सिहर उठा वो अनुपमा की छाती को अपनी पीठ पर महसूस कर सकता था
राघव- क…. क्या क…कर र… रही हो त… तुम ?
राघव नर्वस नेस मे हकलाया, ये सब नया था उसके लिए
अनुपमा- मैं तो बस अपने पति को गले लगा रही हु, क्या मैं ऐसा नहीं कर सकती? अब आप इसकी आदत डाल लीजिए क्युकी मुझे हक है अब सो जाइए अब मुझे नींद आ रही है
जिसके साथ ही अनुपमा ने अपनी पकड़ कस ली वही राघव का हाथ तकिये पर कस गया और उसकी धड़कने बढ़ने लगी पर वो कुछ बोला नही एक तो वो अनुपमा के साथ बहस नहीं करना चाहता था ऊपर से उसे भी ये सब अच्छा लग रहा था
अनुपमा- शादी के बाद अपनी ही पति से दोस्ती करने वाले कन्सेप्ट पर मुझे भरोसा नहीं है, मैं पत्नी हु आपकी और हमे वैसे ही रहना चाहिए हमे एकदूसरे पर पूरा हक है,
अनुपमा ने जो उसके मन मे था कह दिया, धड़कने इस वक्त दोनों की बढ़ी हुई थी और अनुपमा भी जानती थी जैसे वो राघव की बढ़ी धड़कनों को महसूस कर रही थी वैसे ही राघव को भी महसूस हो रहा होगा पर अब उसे उसकी परवाह नहीं थी लेकिन अनुपमा की इस लाइन ने राघव के दिमाग के तार हिला दिए थे वो समझ नहीं पा रहा था के ये दोस्ती वाली बात इसको कैसे पता चली वो तो यही प्लान किया था के पहले दोस्ती से शुरुवात करेंगे और यहा उसके बगैर बोले ही अनुपमा ने उसका प्लान फ्लॉप कर दिया था
राघव- तो तुम्हारा मतलब है के दोस्त बनने का कोई मतलब नहीं?
अनुपमा- नहीं ऐसा नहीं है मतलब हम एकदूसरे के साथ रहकर खुले दिल से बाते कर सकते है एकदूसरे के साथ कंफर्टेबल हो सकते है लेकिन ये सब हम पति पत्नी बनकर भी तो कर सकते है न सिर्फ दोस्त बनके क्या हो जाएगा
राघव कुछ नहीं बोला, उसे तो अब भी समझ नहीं आ रहा था के ये सब क्या चल रहा है और ये अनुपमा अचानक बाकी कपल जैसे बनने का क्यू ट्राइ कर रही है
‘डिअर पतिदेव धीरे धीरे आपको इस अनुपमा की आदत न डला दी तो नाम बदल लूँगी मैं अपना, मैं आपके साथ रहने के लिए कुछ भी करने को तयार हु और मैं किसी भी हालत मे आपका साथ नहीं छोड़ने वाली, शेखर सही था उन्होंने रोका नहीं मुझे और मैं बेवकूफ बगैर कोशिश किए ही हार मान रही थी, हमने बगैर बात किए की एकदूसरे को ब्लैम किया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, मुझे माफ कर दीजिए मै समझ नहीं पाई आपको लेकिन अब मैं आपका साथ नहीं छोड़ने वाली’
अनुपमा ने मन ही मन सोचा और नींद के आग़ोश मे समा गई वही
‘इसको अचानक क्या हुआ और ये इसको दोस्ती वाली बात कैसे पता चली? कही ये मेरा मन तो नहीं ना पढ़ने लगी? लेकिन जो भी हो अच्छा लग रहा है, मैं भी इस रिश्ते को निभाने की पूरी कोशिश करूंगा अनुपमा’
राघव ने मन मे सोच और वो भी सो गया अगली सुबह के इंतजार मे नई शुरुवात की राह मे….