चार मूर्ख
एक जंगल मे एक ऊँचे पेड़ पर एक काली चिडि़या रहती थी। जब वह गाती तो उसकी चोंच से सोने के दाने झड़ते थे। संयोग से एक दिन एक बहेलिए की नजर उस पर पड़ गयी। चिडि़या के मुँह से सोने के दाने झरते देख वह फूला नही समाया उसने मन ही मन कहा, “वाह! कितनी अच्छी तकदीर है मेरी! मैं इस चिडि़या को पकड़ कर अपने घर ले जाऊँगा। यह मुझे रोज सोने के दाने देगी। मैं धनवान हो जाऊँगा।”
फिर बहेलिए ने चिडि़या को पकड़ने के लिए उसने जमीन पर अपना जाल फैलाकर उस पर चावल के कुछ दाने बिखेर दिए। काली चिडि़या दाने चुगने नीचे उतरी और जाल मे फँस गई। बहेलिए ने चिडि़या को पकड़ लिया फिर उसे वह अपने घर ले गया। उस दिन से बहेलिए को रोज सोने के दाने मिलने लगे। देखते देखते वह अमीर आदमी बन गया। उसने सोचा! कि उसे कुछ प्रसिद्धि और सम्मान मिलना चाहिए। इसलिए उसने चिडि़या के लिए सोने का पिजड़ा बनवाया। फिर उसने वह चिडि़या राजा को भेंट कर दी। उपहार देते हुए राजा से कहा। महाराज!, “यह चिडि़या आपके महल मे मधुर गीत गाएगी। आपको सोने के कुछ दाने भी देगी।” यह उपहार पाकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बहेलिए को अपने दरबार मे ऊँचा ओहदा दिया। जल्द ही राजा के पास ढेर सारे सोने के दाने जमा हो गए राजा ने वह सोने की चिडि़या रानी को भेंट कर दी। रानी ने पिंजड़े का दरवाजा खोलकर चिडि़या को आजाद कर दिया और सोने का पिजड़ा शाही सुनार को देकर कहा। इस सोने के पिजड़े से मेरे लिए सुंदर सुंदर गहने गढ़ दो।
चिडि़या उड़ती हुई वापस जंगल मे चली गई। अब रोज सबेरे वह चार मूर्खो का गाना गाने लगी।
पहली मूर्ख मैं थी। जो बहेलिए के जाल में फंसी।।
दूसरा मूर्ख बहेलिया था। जिसने मुझे राजा को भेंट कर दिया।।
तीसरा मूर्ख राजा था। जिसने मुझे रानी को दे दिया।।
चौथी मूर्ख रानी थी। जिसने मुझे आजाद कर दिया।।