मूर्ख गधा
एक कुम्हार था। उसने एक कुत्ता और एक गधा पाल रखा था। कुम्हार के मकान के चारों ओर पत्थर की चहारदीवारी थी। कुत्ता रोज चहारदीवारी के अंदर उसके घर और मिट्टी के बर्तनों की रखवाली करता था। गधा अपने मालिक का वजनदार बोझ ढ़ोने का काम करता।
गधा कुत्ते से ईष्र्या करता था। वह मन-ही-मन सोचता, “कुत्ते का जीवन कितने आराम का है! केवल चहारदीवारी के भीतर इघर-उधर घूमना और किसी अजनबी को देखकर भौंकना।” ऊपर से मालिक उसे प्यार से थपथपाता है। उसे अच्छा खाना खिलाता है। मैं दिन भर भारी बोझ ढ़ोता फिरता हूँ। बदले में कुम्हार मुझे क्या देता है? वह मेरी पीठ पर डंडे लगाता है और खाने के लिये बचा-खुचा घटिया खाना देता है। यह तो वास्तव में घोर अन्याय है।”
कुछ दिन बाद गधे को विचार आया, “क्यों न मैं भी मालिक को कुत्ते की तरह खुश करने की कोशिश करूँ? मालिक घर लौटता है, तो कुत्ता उसे खुश करने के लिये कितने प्यार से भौंकता है। पूँछ हिलाते हुए उसके पास पहुँचता है। अपने अगले पैर उठाकर उसके शरीर पर रखता है। मुझे भी इसी तरह करना चाहिए। फिर मालिक मुझे भी प्यार करेगा।”
गधा मन-ही-मन सोच रहा था कि उसी समय उसने मालिक को आते हुए देखा। उसके स्वागत में गधा ढींचू-ढींचू करते रेंकने लगा, खुशी से अपनी पूँछ हिलाने लगा। आगे बढ़कर उसने अपने दोनो पैर कुम्हार की जाँघो पर रख दिए।
गधे की इस हरकत से कुम्हार हक्का बक्का रह गया। उसे लगा की गधा पागल हो गया है। उसने मोटा-सा डंडा उठाया और गधे की खूब पिटाई की।
बेचारे गधे ने अपने मालिक को खुश करने की कोशिश की थी, पर बदले में उसे डंडे खाने पडे़।
शिक्षा -किसी से ईष्र्या नहीं करनी चाहिए।